हरियाणा के एक छोटे से गांव से निकलकर जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे और 9 फरवरी 2027 तक इस पद पर रहेंगे। साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले वे देश के पहले हरियाणवी चीफ जस्टिस होंगे। जस्टिस सूर्यकांत का सफर युवाओं के लिए प्रेरणा है।

जस्टिस सूर्यकांत का यह एक असाधारण सफर है, जो हरियाणा के एक छोटे से गांव पेटवार से शुरू हुआ। वे ऐसे परिवार से नहीं थे जहां कानून का बोलबाला हो। उन्होंने अपना बचपन सुविधाओं से दूर, एक साधारण ग्रामीण जीवन जीते हुए बिताया। पहली बार उन्होंने शहर तब देखा जब वे दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने के लिए हरियाणा के हांसी शहर गए। आठवीं कक्षा तक उन्होंने गांव के एक ऐसे स्कूल में पढ़ाई की जहां बेंच भी नहीं थे। जस्टिस सूर्यकांत अपने खाली समय में खेतों में काम करके परिवार का हाथ बंटाते थे, जैसे उस गांव का हर लड़का करता था। उनके पिता एक शिक्षक थे।

जस्टिस सूर्यकांत ने जिन लोगों ने उनके साथ करीब से काम किया है, वे जस्टिस सूर्यकांत को एक गहरे ज्ञान और संतुलित विवेक वाले न्यायविद बताते हैं। उनके फैसलों में संतुलन और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की प्रशंसा की जाती है। जस्टिस सूर्यकांत पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 14 साल से अधिक समय तक सेवा देने के बाद, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और फिर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने तक, उन्होंने हमेशा सार्वजनिक संसाधनों की सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण और मुआवजा, पीड़ितों के अधिकार, आरक्षण नीतियों और संवैधानिक सिद्धांतों के व्यापक संतुलन जैसे मामलों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दिखाई है।

जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हुआ था। जस्टिस सूर्यकांत ने पेटवार से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और 1984 में MDU से एलएलबी की। उन्होंने हिसार जिला अदालत में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया, फिर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए चंडीगढ़ चले गए। 38 साल की उम्र में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता बने। 2004 में, 42 साल की उम्र में, उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया। तब भी, जस्टिस सूर्यकांत ने अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखा और 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से कानून में मास्टर डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की

जस्टिस सूर्यकांत ने कई अहम फैसले किए-
हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में 14 साल से अधिक समय तक सेवा देने के बाद, उन्हें 5 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। चंडीगढ़ में हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपने 14 साल के कार्यकाल के दौरान, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए।
इनमें जेल में बंद कैदियों को अपने जीवनसाथी से मिलने या संतानोत्पत्ति के लिए कृत्रिम गर्भाधान का अधिकार शामिल है। उन्होंने एक ऐसे मामले में भी आदेश दिया था जहां एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी। दोषी को सजा सुनाते हुए, उन्होंने देखा कि आरोपी की चार बेटियां थीं। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से एक कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की और सबसे बड़ी बेटी के लिए मुफ्त शिक्षा का अनुरोध किया।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में, वे उस पूर्ण पीठ का हिस्सा थे जिसने 2017 में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख को बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद हुई हिंसा के बाद डेरा का सैनिटाइजेशन करने का आदेश दिया था। उन्होंने डेरा के अंदर वित्तीय अनियमितताओं की केंद्रीय जांच के भी निर्देश दिए थे।
उन्होंने 2007 से 2011 तक राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority) के शासी निकाय के सदस्य के रूप में कार्य किया। सुप्रीम कोर्ट में, वे उन पीठों का हिस्सा थे जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और न्यायिक दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच संविधान में निहित जीवन के मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग है।